मंडला- कृषि विज्ञान
केंद्र मण्डला, जवाहरलाल नेहरू
कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति सम्मानीय प्रोफेसर प्रदीप कुमार बिसेन एवं
विस्तार संचालक सेवाऐं श्रीमती डॉ. ओम गुप्ता के निर्देशन मे कृषि विज्ञान केंद्र
मण्डला के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. विशाल मेश्राम के नेत्रत्व में भारत
सरकार द्वारा संचालित गरीब कल्याण रोजगार अभियान के अन्तर्गत ग्राम सेमरखापा मे
तीन दिवसीय प्रशिक्षण केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. आर.पी.अहिरवार एवं नील कमल पंद्रे
द्वारा दिया गया इस प्रशिक्षण के प्रवासी कामगारों को मास्क, सेनेटाइजर, कटहल के पौधे एवं
प्रशिक्षण सामग्री भी दी गई। प्रशिक्षण के दौरान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. आर.पी.अहिरवार
ने बताया कि मुनगा/ सहजन की खेती वर्तमान समय मे तीव्र गति मे वृद्धि कर रही है
क्योंकि सहजनएक औडॉ धीय फसल है। सहजन की खेती लगाने के 10 महीने बाद एक
एकड़ में किसान एक लाख रुपए कमा सकते हैं। कम लागत में तैयार होने वाली इस फसल की
खासियत ये है कि इसकी एक बार बुवाई के बाद चार साल तक बुवाई नहीं करनी पड़ती है।
साथ ही सहजन एक औडॉ धीय फसल है। ड्रमस्टिक को हिंदी में सहजन कहा जाता है और भारत
में यह एक लोकप्रिय सब्जी है। ड्रमस्टिक का वैज्ञानिक नाम मोरिंगा ओलीफेरा है।
सहजन की खेती बड़े पैमाने पर होती है। वैसे तो सहजन की उत्पत्ति भारत में ही हुई है
लेकिन औडॉ धी के तौर पर इस्तेमाल होने की वजह से यह दूसरे देशों में भी पहुंच गया
है। सहजन का पेड़ मोरिंगा अपने विविध गुणों, सर्वव्यापी स्वीकार्यता और आसानी से उग आने के लिए जाना जाता है।
सहजन का पत्ता, फल और फूल सभी पोडॉ
क तत्वों से भरपूर हैं जो मनुष्य और जानवर दोनों के लिए काम आते हैं। सहजन के पौधे
का लगभग सारा हिस्सा खाने के योग्य है। पत्तियां हरी सलाद के तौर पर खाई जाती है
और करी में भी इस्तेमाल की जाती है। इसके बीज से करीब 35-40 फीसदी तेल पैदा
होता है जिसे बेन तेल के नाम से जाना जाता है। इसका इस्तेमाल घड़ियों में भी किया
जाता है। इसका तेल साफ, मीठा और गंधहीन
होता है और कभी खराब नहीं होता है। इसी गुण के कारण इसका इस्तेमाल इत्र बनाने में
किया जाता है। इसके महत्व को ध्यान मे रखकर इसकी खेती को व्यवसाय का रूप दिया जा
सकता है। केंद्र पोग्राम सहायक नील कमल पन्द्रे ने प्रशिक्षण में जानकारी देते हुए
कहा कि कम रूपया लगाकर भी अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। इसके लिए छोटे-छोटे
व्यवसाय जैसे बड़ी पापड, अचार, मुरबा, चिप्स इत्यादि
स्थापित कर सकते है। क्योंकि इस कार्य मे मातएॅ, बहने निपुड होती है। जो आसानी से कर सकती है।
वस करने की जरूत है।
कटहल की खेती
करके कमाए ज्यादा मुनाफा
भारत में कटहल एक सदाबहार, दीर्घजीवी, अधिक आय देने
वाला वृक्ष होता है, जो करीब 12 से 15 मीटर ऊंचा और
गहरे हरे पत्ते वाले होते है इस बहुशाखीय वृक्ष की खेती किसानों के लिए आय की
दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी खेती से बहुत अच्छा मुनाफा होता है। कटहल
कच्चा हो या पका हुआ, इसको दोनों
प्रकार से उपयोगी माना जाता है, इसलिए बाजार में इसकी मांग ज्यादा होती है। इसकी बागवानी
यूपी, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और
दक्षिण भारत के कई राज्यों में होती है। इसका उपयोग सब्जी एवं आचार के रूप में
प्रमुखता से किया जाता है। कटहल का कच्चा फल कषैला, वायुनाशक, बलवर्धक और कफनाशक होता है एवं पका फल शीतल, बलवर्धक,उत्तेजक, मोटापा बढ़ाने
वाला होता है। किस्में रूदाक्षी, खाजा, सिंगापुरी, पीले कोये वाली किस्म मुत्तम, वारिखा, इनके पौधे कई सालों तक उत्पादन देतेरहते है। जिससे कम लगत
मे अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।
खाद्य प्रसंस्करण
उद्योग
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग
का तात्पर्य ऐसी गतिविधियों से है जिसमें प्राथमिक कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण कर
उनका मूल्यवर्धन किया जाता है। उदाहरण के लिये डेयरी उत्पाद, दूध, फल तथा सब्जियों
का प्रसंस्करण, पैकेट बंद भोजन
तथा पेय पदार्थ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के अंतर्गत आते हैं।देश में उपलब्ध फल
सब्जियों के प्रसंस्करण द्वारा मूल्य संवर्धन किया जाए तो फल सब्जियों को नष्ट
होने से बचाने के अतिरिक्त इनके गुणों में भी वृद्धि तथा अधिक लाभ प्राप्त किया जा
सकता है। प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों को जैम, जैली, चीज,
मार्मलेड, टॉफी, सॉस, चटनी, अचार, मुरब्बा, कैन्डी, तुरंत सेव्य पेय, नैक्टर, स्क्वैश, शरबत के
प्रसंस्करण और परीक्षण के बारे में व्यावहारिक जानकारी दी गई।
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