‘‘बीजों का टीकाकरण कर दिया धारवाड़ पद्वति से अरहर उत्पादन तकनीक पर प्रशिक्षण‘‘ - newswitnessindia

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Wednesday, June 24, 2020

‘‘बीजों का टीकाकरण कर दिया धारवाड़ पद्वति से अरहर उत्पादन तकनीक पर प्रशिक्षण‘‘


मंडला- कृषि विज्ञान केंद्र मण्डला के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. विशाल मेश्राम के मार्गदर्शन में 22 जून को केंद्र के वैज्ञानिक नील कमल पन्द्रे एवं फाउंडेशन फॉर ईकोलाजिकल सिक्युरिटी मंडला संस्था के अनुप ठाकुर के साथ ग्राम खमरिया एवं समैया मे प्रवासीय 30-30 मजदूरो को आधा किलो अरहर का बीज का वितरण किया गया। सामग्री वितरण के दौरान कोरोना संक्रमण को देखते हुए कृषकों को मास्क प्रदाय किये गये तथा म.प्र. शासन व भारत सरकार के द्वारा जारी सुरक्षा एवं आपसी दूरी बनाये रखने के नियमों का पालन करते हुए अरहर की उन्नत उत्पादन तकनीकी पर विस्तार से प्रशिक्षण दिया गया जिसमें विशेषकर बीजोपचार का तरीका पर प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया गया। इसके अलावा अरहर उत्पादन की धारवाड़ पद्वति को विस्तार से बताया गया। वैज्ञानिक श्री नील कमल पन्द्रे द्वारा बताया गया कि यह पद्वति कर्नाटक में स्थित कृषि विश्वविद्यालय, धारवाड़ से विकसित की गई है तथा यह अरहर उत्पादन की रोपा विधि है, जिसमे प्लास्टिक के पैकेट में 2-2 दाने डालकर रोपा तैयार किया लिया जाता है। रोपा तैयार करने हेतु मध्य मई का माह उपयुक्त होता है। इन तैयार होते हुये रोपा को किसी छायेदार स्थान पर रखकर सिंचाई करते रहना चाहिए। 

जब मानसून आ जाये तब इन तैयार पौधे को उठी हुयी क्याॅरियों या मेढ़ो पर कतार से कतार 5 फीट तथा पौध से पौध का अंतराल (दूरी) 3फीट रखनी चाहिए। मेढ पर जब 3-4 इंच वर्षा होने पर पौध को रोपित करना चाहिये। पौध रोपण के तुंरत बाद पौध के ऊपरी कोपलों की खुटाई कर देनी चाहिये तथा यह क्रिया एक माह पश्चात् निंदाई, गुड़ाई एवं खाद देने के बाद पुनः ऊपरी कोपलों का खुटाई कर देनी चाहिए। चैड़ी मेढ़ में रोपाई करने से अति वर्षा या अल्प वर्षा की दशा में पौध का समान विकास होता रहता है। इस विधि से अरहर उत्पादन करने से अरहर के पौधे का आकार तथा शाखाऐं का फैलाव अधिक होता है। जिससे प्रति पौधा अधिक उत्पादन होता है। रोपाई विधि से अरहर का उत्पादन करने हेतु बहुत ही कम बीज की मात्रा की आवश्यकता होती है, इसके साथ ही साथ इस विधि से बीज की बोआई जल्दी कर दी जाती है, जिससे फसल में होने वाली पाला, कीट, बिमारियों से बचाव होता है। इस विधि से प्रति एकड़ 8 से 10 क्ंिवटल तक उत्पादन प्राप्त होता है। फसल के साथ ही साथ जलाऊ लकड़ी अतिरिक्त प्राप्त होती है। अरहर की कटाई नवम्बर माह तक हो जाती है अतः देरी से बोने वाली गेहॅूं या चना के कास्त अगले सीजन में की जा सकती हैै।