मैं नारी हूंँ। इस मानव समाज में मुझे कई रूपों से जाना जाता है। जैसे कि- बेटी, बहन, पत्नी और मांँ आदि। इस मानव समाज में इन रिश्तों के बीच मेरा जीवन धूप और छाँव की तरह प्रतिपल बदलते रहता है। कभी-कभी मुझे लगता है कि क्या मेरे जीवन में कभी स्थिरता आ पाएगी भी या नहीं? भले ही आज मानव समाज 21वीं सदी में जी रहा हो, भले ही उसने अनेक क्षेत्रों में प्रगति कर ली हो, भले ही उसने ब्रह्मांड को खंगाल लिया हो; परंतु आज भी वह मानसिक रूप से विकसित नहीं हो पाया है। उसके कृत्यों को देखकर तो ऐसा लगता है मानो उसकी मन:स्थिति विकलांगता को प्राप्त हो गई है। सदियों से ही मेरे सभी रूपों में मैंने इस मानव समाज से अनेक कष्ट और अत्याचारों को ही पाया हैं।
'बेटी' के रूप में जब मैं किसी -किसी घर में जन्म लेती हूंँ तो मेरे जन्म पर उस घर के लोगों की खुशियों का ठिकाना नहीं रहता। उस घर के लोग मुझे सहर्ष रूप में स्वीकार करते हैं। वे मुझे अपनी 'आंँखों का तारा' और 'जिगर का टुकड़ा' समझते हैं। और मुझे दैवीय रूप मानकर प्यार, मान- सम्मान के साथ मेरा लालन- पालन करते हैं। तो वहीं दूसरी ओर जब मैं किसी -किसी घर में जन्म लेती हूंँ तो बेटे की चाह रखने वाले उस घर के लोग मेरे जन्म पर खुश न होकर दुखी होते हैं। वे इस प्रकार से मातम मनाते हैं जैसे उस घर में किसी का जन्म नहीं बल्कि मृत्यु हुई हो। उस घर के लोग मुझे अभिशाप समझते हैं। इस प्रकार उन लोगों के द्वारा मुझे अपने घर का बोझ समझकर जन्म के तुरंत बाद ही मार दिया जाता है, या कचरे के ढेर में लावारिस फेंक दिया जाता है। कहीं- कहीं तो गर्भ में मेरे होने की जानकारी होते ही मुझे गर्भ में ही मार दिया जाता है।
'बहन' के रूप में किसी- किसी घर में मुझे मेरे भाइयों के द्वारा असीम प्यार, मान- सम्मान की प्राप्ति होती है। मेरे भाई मेरी खुशियों के लिए सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं। वे मेरी रक्षा और सम्मान के लिए अपनी जान की बाजी तक लगा देते हैं। तो वहीं दूसरी ओर किसी- किसी घर में मुझे मेरे अपने ही भाइयों के द्वारा अपमानित होना पड़ता है। मेरे अपने ही भाई मेरा बार-बार तिरस्कार करते हैं। कहीं- कहीं तो मेरे अपने ही भाई अपनी शारीरिक प्यास बुझाने के लिए मुझे अपनी हवस का शिकार बना लेते हैं। या फिर चंद रुपयों के लिए दूसरों को बेच देते हैं। आज मैं सबके बीच होकर भी अपने आप को अकेली ही पाती हूंँ। मुझे हमेशा इस बात का भय बना रहता है कि न जाने कब कौनसी निगाहें मुझे अपनी हवस का शिकार बना ले।
'पत्नी' के रूप में किसी- किसी घर में मुझे मेरे पति के द्वारा असीम प्यार, मान- सम्मान प्राप्त होता है। मेरे पति मेरे हर सुख -दुख में मेरे साथ होते हैं। उनका प्रतिपल साथ ही मुझे हर कठिन परिस्थितियों से लड़ने का हौंसला बढ़ाता है। तो वहीं दूसरी और किसी -किसी घर में मुझे मेरे ही पति के द्वारा अनेक कष्ट दिए जाते हैं। वे मेरे साथ जानवरों से भी बुरा व्यवहार करते हैं।
मेरे गरीब मांँ -बाप के घर से दहेज न ला पाने के कारण मुझे मेरे दहेज लोभी पति द्वारा बार-बार प्रताड़ित किया जाता है। किसी- किसी घर में तो दहेज की लालच में मुझे जिंदा ही जला दिया जाता है।
मांँ न बन पाने पर मेरे पति और उसके परिवार के लोग मुझे बांँझ, डायन, चुड़ैल, डाकिनी आदि जैसे अपशब्दों से मुझे अपमानित करते हैं।
'मांँ' के रूप में किसी- किसी घर में मुझे मेरी संतान के द्वारा असीमित सुख की प्राप्ति होती है। मेरी संतान मुझे ईश्वर का दर्जा देकर दिन- रात मेरी सेवा में लगी रहती है। वह मेरी सेवा में एक क्षण भी गंवाती नहीं है। मेरे चरणों में ही वह अपना संसार समझती है। तो वहीं दूसरी ओर किसी- किसी घर में मेरी अपनी ही संतान के द्वारा मुझे अनेक असहनीय कष्ट दिए जाते हैं। जिस संतान को पाने के लिए मैंने
कहीं मंदिर, तो कहीं मस्जिद में जाकर
माथा टेका- दुआएंँ मांगी, जिसे अपनी कोख में नौ महीनों तक पाला, अनेक असहनीय पीड़ा सहकर भी उस संतान के मीठे -मीठे सपने देखते हुए अपनी कोख में उसका लालन-पालन किया; आज वही संतान मुझे इस प्रकार भूल गई है जैसे वह मुझे जानती ही नहीं हो। जिस संतान को मैंने बचपन में अपनी उंगलियों का सहारा देकर चलना सिखाया, अपनी बाहों को झूला बनाकर झुलाया, अपने कंधों पर बैठा कर यह संसार दिखाया; आज वही संतान मेरे वृद्धावस्था में मुझे अपनाने से कतरा रही है। मुझे घर के टूटे-फूटे कबाड़ की तरह समझकर घर से बाहर निकाल देती है।
इस निर्दयी समाज से मुझे निरंतर असहनीय दुख, अपमान, प्रताड़ना आदि मिलते रहे हैं। यह सब देखकर मेरी अंतरात्मा कांप जाती है। मेरे अंतर्मन में भी कुछ अभिलाषाएँ हैं। मैं भी इस समाज में अन्य लोगों की तरह सम्मान का पात्र बनना चाहती हूंँ। मैं भी निर्भय होकर स्वच्छंद रूप से अपने सपनों के आकाश में उड़ना चाहती हूंँ। मैं भी पुरुषों की तरह कंधे से कंधा मिलाकर अपने सपनों को साकार करना चाहती हूँ।
क्या आप मेरे लिए इस निर्दयी दुनिया से लड़ोगे? क्या आप मेरे ऊपर हो रहे अत्याचार का विरोध कर मुझे न्याय दिला सकोगे? क्या आप में से किसी के पास मेरे प्रश्नों का उत्तर है?
मन की कलम से
रवि शंकर सिंगारे
सेंट नॉर्बर्ट स्कूल, केवलारी
जिला - सिवनी (म.प्र)
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