रिपोर्ट – संतोष तिवारी
मंडला। स्वर्गीय बांकेबिहारी शुक्ला एवं स्वर्गीय सुशीला शुक्ला की स्मृति में स्थानीय जन एवं कृष्णस्वरूप दुबे व अनीता दुबे के द्वारा आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ का आयोजन भगतसिंह वार्ड वाटर प्लांट के सामने किया जा रहा है। संगीतमयी कथा का वाचन पंडित परिणित कृष्ण दुबे के श्रीमुख से किया जा रहा है।
श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर पं. परिणित दुबे ने ध्रुव चरित्र एवं शिव विवाह का विस्तार से वर्णन किया जिसे श्रवण कर रहे भक्तजन भाव विभोर हुए। कथा वाचक ने शिव विवाह का वर्णन करते हुए कहा कि, सती के आत्मदाह, पार्वती के रूप में पुर्नजन्म और शिवजी के साथ उनके विवाह की मनोहारी कथा का बखान करते हुए उन्होंने बताया कि, किस तरह से भगवान शंकर का विवाह गौरा पार्वती से होता है और तमाम शिव गण भगवान शंकर की बारात में शामिल होकर भगवान शंकर जी का विवाह गौरा पार्वती से कराया गया।
माता पार्वती प्रकृति स्वरूपा कहलाती हैं। कथा वाचक पंडित परिणितकृष्ण ने भक्त ध्रुव के चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि एक बार उत्तानपाद सिंहाशन पर बैठे हुए थे। ध्रुव भी खेलते हुए राजमहल में पहुंच गए। उस समय उनकी अवस्था पांच वर्ष की थी। उत्तम राजा उत्तनपाद की गोदी में बैठा हुआ था। ध्रुव जी भी राजा की गोदी में चढ़ने का प्रयास करने लगे।
सुरुचि को अपने सौभाग्य का इतना अभिमान था कि उसने ध्रुव को डांटा। अजामिल का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि, एक अच्छे कर्मकांडी ब्राह्मण थे, परंतु कुसंगति के कारण बिगड़ गए और उसके बाद उन्होंने अपने पुत्र का नाम नारायण रखने के मात्र से उनकी मुक्ति हो गई। उन्होंने कहा कि अच्छे संत के या उसके नाम के स्मरण से ही आदमी की मुक्ति हो जाती है। जन्म देने वाली माँ बच्चे को स्तन पान कराकर पुष्ट करती है।
और गुरु रूपी माँ हमेशा के लिए स्तनपान छुड़ाती अर्थात चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्त कराती है, बालक माता के दोष से चरित्रहीन पिता के दोष से मूर्ख कुलदोष के कारण कायर एवं स्वयं के दोष से दरिद्र बनता है। प्रहलाद जैसी दृष्टि रखोगे तो पत्थर से भी भगवान प्रगट होंगे। कथा में बड़ी संख्या में महिला- पुरुष कथा श्रवण करने पहुंच रहे है। आयोजक मंडल के प्रगीत, शिल्पा, विवेक, पलक ने इस संगीतमयी भागवत कथा को लोगों से श्रवण करने की अपील की है।
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