जन्म के तुरंत बाद कराये बच्चों की स्क्रीनिंग प्रसव केन्द्रों में कार्यरत स्टाफ का एक दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित - newswitnessindia

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Friday, December 13, 2019

जन्म के तुरंत बाद कराये बच्चों की स्क्रीनिंग प्रसव केन्द्रों में कार्यरत स्टाफ का एक दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित



मंडला। नवजात शिशु संवेदनशील होते हैं और उन्हें 9 महीने तक गर्भ की सुरक्षा में रहने के बाद अपने नए वातावरण में ढलना पड़ता है। विज्ञान और चिकित्सा जगत में हुई प्रगति ने डॉक्टरों को उसी समय से शिशु की स्थिति की जाँच करने की सुविधा प्रदान की है, जब उसका पहला अंग आकार लेना शुरू कर देता है। हालांकि, बच्चे के जन्म के तुरंत बाद अच्छे स्वास्थ्य और किसी भी तरह की चिकित्सीय परिस्थितियों के बारे में जानने के लिए स्क्रीनिंग करना बहुत महत्वपूर्ण है।
बता दे कि अधिकांश शिशु स्वस्थ जन्म लेते हैं और स्वस्थ ही रहते हैं, लेकिन बहुत कम मात्रा में शिशु जन्म के समय स्वस्थ होने पर भी मेटाबोलिक गड़बड़ी के चलते बाद में बीमार हो जाते हैं। यदि इसका इलाज न किया जाएं तो यह जानलेवा भी हो सकता है। कुछ बच्चे जन्म से ही जटिल स्वास्थ्य समस्याओं के साथ जन्म लेते हैं जैसे कि बधिरता या हृदय में कोई खराबी। सौभाग्य से कुछ बेहद आसान टेस्टों की मदद से इन जटिलताओं का जल्दी ही पता लगा लिया जाता है। इसके बाद इलाज करके इन खतरों को टाला जा सकता है।
ऐसे ही नवजात शिशु के लिये वरदान बनकर आया है राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम। इन मासूम बच्चों की खुशी को बरकरार रखने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की योजना राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत 0 से 18 वर्ष तक के बच्चों को निरूशुल्क स्वास्थ्य सेवाएं जिला शीघ्र पहचान एवं हस्तक्षेप केन्द्र में दी जाती है। जिससे कि पीड़ित बच्चे निरोगी हो सके। इसी उद्देश्य से आरबीएसके अंतर्गत शुक्रवार को जिले में स्थित सभी प्रसव केन्द्रों में कार्यरत स्टाफ के चिकित्सक, एएनएम एवं नर्साे का जन्मजात विकृति की पहचान के लिये एक दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया। प्रशिक्षण जबलपुर एलग्रि हॉस्पिटल से शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. विजया जायसवाल द्वारा दिया गया।
प्रशिक्षण की शुरूआत जिला शीघ्र हस्तक्षेप प्रबंधक राजाराम चक्रवर्ती द्वारा की गई। प्रशिक्षण की शुरूआत उपस्थित चिकित्सक एएनएम और नर्स को राष्ट्रीय बाल  स्वास्थ्य कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत कौन-कौन सी बीमारियां आती है, जिसे हम आरबीएसके के अंतर्गत 0 से 18 वर्ष के बच्चों का निरूशुल्क इलाज करा सकते है। आरबीएसके के अंतर्गत 38 बीमारियों का निरूशुल्क ईलाज किया जाता है। यहां आरबीएसके टीम के द्वारा इनको चिन्हित कर इनका जांच परीक्षण के बाद उपचार कराया जाता है।
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. विजया जायसवाल ने बताया कि जन्म लेने के तुरंत बाद बच्चे की संपूर्ण जांच के लिये कोम्प्रेहेंसिव न्यूबोर्न स्क्रीनिंग कराई जाती है। इस स्क्र्रीनिंग के बाद बच्चा किस विकृति या बीमारी से पीड़ित है इसका पता लगाया जा सकता है। जिसे हम बच्चे को एक बेहतर उपचार के माध्यम से स्वस्थ कर सकते है। यदि जन्म के तुरंत बाद इसकी पहचान नहीं की गई तो बच्चा विकृत या किसी अन्य गंभीर बीमारी से ग्रसित हो सकता है।
दिये गए प्रमाण पत्रः
प्रसव केन्द्रों में कार्यरत स्टाफ का एक दिवसीय प्रशिक्षण  कटरा स्थित राजपूत होटल में आयोजित किया गया। प्रशिक्षण में स्वास्थ्य विभाग से जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आरके पीपरे, रिटा. जिला स्वास्थ्य अधिकारी एसपी दुबे, डीपीएचएनओ कमला नंदनवार, जिला शीघ्र हस्तक्षेप प्रबंधक राजाराम चक्रवर्ती, आडियोलॉजिस्ट वीरेन्द्र पाटिल, चिकित्सक, आरबीएसके चिकित्सक, स्टाफ नर्स, एएनएम, योगीराज अस्पताल से डॉ. वर्षा आर्या, डॉ. जितेश अमृते, डॉ. जितेन्द्र मेहरा, कटरा हॉस्पिटल से डॉ. लिलि, डॉ. रूबीना मौजूद रही। इस दौरा डॉ. एसपी दुबे द्वारा उपस्थित सभी लोगों को प्रमाण पत्र प्रदान किये गए।
न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट की दी जानकारीः
डॉ. विजया जायसवाल ने बताया कि गर्भावस्था के शुरूआती चरण में जब भू्रण बढऩे लगता है, तब न्यूरल ट्यूब विकसित होता है जो आमतौर पर गर्भधारण के दो हफ़्तों के भीतर शुरू हो जाता है। यह ट्यूब एक छोटे से रिबन की तरह होता है जो बाद में ब्रेन स्पाइनल कॉर्ड और नसों में विकसित होता है। कुछ वजहों से यह न्यूरल ट्यूब असामान्यता विकसित करने लगता है जिसके परिणाम स्वरूप ब्रेन, स्पाइनल कॉर्ड और नसों के विकास में समस्याएं आने लगती हैं। महत्वपूर्ण अंगों को प्रभावित करने वाले इस तरह के दोषों को न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट कहते हैं।  डॉ. जायसवाल ने फोर डी से संबंधित जानकारी दी। जिसमें अलग-अलग बीमारी और विकृति वाले बच्चों को चिन्हित किया जाता है। इस दौरान डिंडौरी से आई स्टाफ नर्स प्रिंयका दीप ने न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट के अंतर्गत एक रोग का प्रिजेंटेशन करके दिखाया। उन्होंने बताया कि न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट से ग्रस्ति बच्चों को तुरंत कैसे उपचार दिया जाए। जिससे उसे बेहतर ईलाज के लिये रैफर कर सके।


क्या है नवजात शिशु की स्क्रीनिंगः
एक नवजात शिशु का स्क्रीनिंग टेस्ट नवजात शिशुओं पर संभावित घातक या हानिकारक विकारों की जाँच करने के लिए किया जाने वाला एक सरल परीक्षण है, जिसे सामान्य रुप से जन्म के समय पता नहीं लगाया जा सकता है। स्क्रीनिंग, जन्म के तुरंत बाद और कभी-कभी अस्पताल छोडऩे से पहले भी की जाती है। यह प्रक्रिया सरल है और इसमें रक्त स्क्रीनिंग के साथ श्रव्य स्क्रीनिंग परीक्षण भी शामिल है।


कब कराये नवजात की स्क्रीनिंगः
शिशु के जन्म के तुरंत बाद शिशु की चयापचय संबंधी जाँच की जाती है, रक्त परीक्षण करने का सही समय जन्म के 24 से 48 घंटे के बीच का होता है क्योंकि रक्त के नमूने को 24 घंटे से पहले लिए जाने पर कई स्थितियाँ पता नही चल पाती हैं और यदि 48 घंटे के बाद परीक्षण किया जाता है तो सुधारात्मक कार्रवाई करने में बहुत देर हो सकती है। सटीक परिणाम सुनिश्चित करने के लिए शिशु को दो सप्ताह की उम्र में दूसरे स्क्रीनिंग परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है।