लिए शिव हाथ में डमरू
गले में नाग काला है
लिए शिव हाथ में त्रिशूल
गले में विष डाला है
लिए संग गौरा रानी को
मेरा शिव भोला भाला है
लपेेटे भस्म देह पर
गले में रूद्र की माला है
कैलाश पति त्रिपुरारी ने
नंदी को पाला है
धूनि रमाये कैलाश पर
बिछाए मृगछाला है
जटाओं में भरकर
गंगा को पृथ्वी पर उतारा है
ध्यान मग्न होकर
शीश पर चन्द्र विराजा है
विशाल त्रिपुण्ड मनोहर
मेरे शिव का रूप निराला है
जगत का पालन हार
मेरा शिव सबका प्यारा है
शिव आदि है, अंत है
विश्व का भार संभाला है
रचना - श्रीमती राधा दुबे, जबलपुर मध्य प्रदेश
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