समाज के लिए अशोभनीय हैं जुआ और सट्टा, जुआ सट्टा में अब स्कूली बच्चे भी लिप्त... - newswitnessindia

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Thursday, October 14, 2021

समाज के लिए अशोभनीय हैं जुआ और सट्टा, जुआ सट्टा में अब स्कूली बच्चे भी लिप्त...

मण्डला। प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बड़े-बड़े बैनर पोस्टर लगाकर प्रचारित किया था कि जुआ और सट्टा खेलना समाज के लिए असोभनीय कार्य हैं व सामाजिक अपराध भी हैं, जिस पर अंकुश लगाना अनिवार्य रूप से सभी का कर्तव्य बनता हैं। परंतु उनकी मंशा पर उन्हीं का विभाग पानी फेरने पर आतुर हैं। जुआ सट्टा खिलाने वालों को अब पुलिस का कोई खौफ नहीं रहा हैं। यहां तक पूरे शहर से लेकर गांव तक सट्टा और जुआ का खेल बृहद रूप से पनप गया हैं। यहां तक की शहर के बहुत से चौराहों पर बकायदा काउंटर लगाकर सट्टे की पट्टी लिखी जा रही हैं। मोबाइल से ग्रामीण क्षेत्रों में इनके एजेंटों द्वारा सट्टे की पट्टी दी जा रही हैं। नागपुर मुंबई से संचालित सट्टे का परिणाम जानने तथा ओपन क्लोज काटने के लिए बैठे रहते हैं। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र जिला मंडला के ग्रामीण क्षेत्रों में सट्टे का व्यवसाय एक बीमारी की तरह फैला हुआ हैं। जुआ और सट्टा बड़े अपराधों में क्षेत्र के युवकों को ले जा रहा हैं, वही अपने रोजी रोजगार छोड़कर जुआ सट्टे की लालच में ग्रामीण युवक बर्बाद हो रहे हैैं।


सांसद विधायक भी जुआ और सट्टा रोकने के लिए आज तक आगे नहीं आए

आश्चर्य इस बात का हैं कि स्थानीय जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र में चल रहे जुआ और सट्टा को रोकने के लिए किसी भी दल के प्रतिनिधि आगे आकर इस धंधे पर अंकुश लगाने के लिए कोई आवाज नहीं उठाए, ना हीं कोई, सांसद विधायक भी आवाज उठाऐ, जिससे पुलिस अमला बेखौफ हैं रहता हैं। इस बुरी लत में फंसे युवा वर्ग साहूकार के कर्ज में डूब कर चोरी लूट जैसी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। समय रहते पुलिस विभाग ने इन सटोरियों पर नकेल नहीं कसी तो आने वाले समय पर बड़ी घटनाओं को जन्म लेना कोई बड़ी बात नहीं होगी, जिससे क्षेत्र में नवयुवक पीढ़ी भी इस सट्टा पट्टी की चपेट में आ रहें हैं। जिले में सट्टा का इतना जोर हैं की  कस्बाई क्षेत्रों में युवा वर्ग, श्रमिक कर्मचारी, महिलाएं, स्कूली छात्र, और छोटे बड़े समाज के प्रतिष्ठित कहलाने वाले अनेक लोग इस धंधे के चक्कर में फंस चुके हैं, जिसके चलते उन्हें स्वयं की बर्बादी का कोई ज्ञान नहीं हैं। धन की लालच के कारण लोग ऐसे सपनों के दुनिया में खोए रहते हैं कि उन्हें सिर्फ सौ का हजार बनाने के अलावा और कुछ नहीं सूझता। सुबह सूर्य की पहली किरण से जो यह सिलसिला शुरू होता हैं तो रात 12:00 बजे ही यह थमता हैं। किसी को खुशी तो किसी को गम के दौर से गुजारना पड़ता हैं, पर यह लालची मन तो इनके बस में नहीं हैं। बस लाख नुस्कान और जिल्लत उठाने के बाद भी इनकी दिनचर्या में कोई अंतर नहीं आता हैं। शहर और कस्बाई क्षेत्रों के चौराहे के पान दुकान, किराने की दुकान, कपड़ों की दुकान, साइकिल की दुकान, होटले, सब्जी मंडी व शासकीय परिसरों में भी सट्टा पट्टी लिखने वाले एजेंट अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं, और सट्टा खेलने वाले उनके पास अपने-अपने तरीके से पहुंच कर अपने भाग्यशाली अंकों की लम्बी फेहरिस्त रुपयों सहित दे जाते हैं। मात्र कागज की पर्ची के विश्वास पर टिके इस समाज विरोधी कृत्य में अनेक बार ऐसे अवसर आते हैं जब लम्बे चुकारे के समय  सटोरियों ने बेईमानी कर जाते हैं या किस्त में भुगतान की प्रक्रिया बना दी जाती हैं। वर्षों से संचालित हो रहा यह व्यवसाय पुलिस के लिए एवं सट्टा खेलने वाले के परिवार का सर दर्द बना हुआ हैं। हमेशा पुलिस के लिए चुनौती बनकर नए-नए सटोरियों और पट्टीदार सामने आ जाते हैं। कभी इस लूटपाट शोषण और फरेब के व्यवसाय में ऐसे तत्व लिप्त रहते हैं जिनकी ना तो समाज में कोई इज्जत रहती हैं, पर बदलते समय के साथ-साथ अब इसके संचालन में तथाकथित प्रतिष्ठित कहे जाने वाले लोग भी शामिल हो चुके हैं। इनके काम करने वालों का लम्बा नेटवर्क भी रहता हैं, जिससे जिले में सट्टे का कार्य लगातार बढ़ता ही जा रहा हैं। अंको के इस खेल में लोग सुबह से शाम तक विषाद बिठाए आने वाले अंक का गणित भिड़ाते रहते हैं। 


इलेक्ट्रॉनिक युग का फायदा उठा रहें सट्टा व्यवसाई और खिलाड़ी

बता दें कि इलेक्ट्रॉनिक युग के चलते मोबाइल से ओपन क्लोज और जोड़ी का लेनदेन कर रहे हैं। जिले में प्रतिदिन लगभग दसों लाखों रुपए का सट्टा होता हैं, और सिर्फ पाट्टीदार जो पट्टी लिख रहे हैं वे दिन में हजारों रुपए का कमीशन खा रहे हैं। जिला पुलिस अनेक बार विशेष अभियान चलाकर हड़कम्प जरूर मचा देता हैं, और जिले भर में सैकड़ों की संख्या में सटोरिया पकड़े जाते हैं, किंतु न्यायालय से जमानत और जुर्माना कराकर वे फिर इस कार्य में दोगुना लगन से लग जाते हैं। विभिन्न नामों से चल रहे सट्टे का जोर मंडला शहर के साथ ही जिले के सभी क्षेत्रों में और सर्वाधिक ग्रामीण क्षेत्रों में भारी जोर हैं। अब सटोरियों और पट्टीदार भी कोई छुटपुट आदमी नहीं हैं, जिस पर पुलिस विभाग का कोई छोटा कर्मचारी सीधे हाथ डाल सके। इस पर प्रतिबंध लगाना विशेष टीम को ही आगे आना होगा तभी समाज में पनप रहे इस बुराई का अंत सम्भव हो सकेगा। अंजनिया और माधोपुर में सट्टे का बड़ा जोर चल रहा हैं, अंजनिया प्रक्षेत्र यूं तो कहने को बहुत शांत हैं, परंतु कुछ तत्व से भ्रष्ट समाज की ओर ढकेला चाहते हैं। अंजनिया और माधोपुर में जन चर्चा का विषय हैं कि सटोरियों के द्वारा स्थानीय पुलिस को महीना बंदी रुपयों का नजराना भेंट दिया जाता हैं, जिसके चलते पुलिस द्वारा इनके व्यवसाय को रोकने में नाकाम रहती हैं। इस धंधे में युवा तो युवा बुजुर्ग एवं महिलाएं भी इसमें लिप्त हैं। यह अपने दिन भर की कमाई को सट्टे के नम्बरों में बर्बाद करते हैं। आज अंजनिया क्षेत्र के आसपास के गांव में सट्टा पट्टी की आदत बन चुकी हैं। ऐसा नहीं हैं कि पुलिस प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं है, जानकारी के बाद भी पुलिस कोई सुध लेना ही नहीं चाहती हैं। शाम को चाय पान के ठलों में मोबाइल से नम्बरों की गणित आने लगती हैं, आज अंजनिया एवं माधोपुर के अलावा आसपास के क्षेत्रों में सट्टा पट्टी में सबसे ज्यादा लिप्त हैं। समाज में फैली इस दूषित प्रणाली पर रोक आवश्यक हैं। मीडिया जब इस सामाजिक बुराई को समाचार प्रकाशन कर पुलिस प्रशासन को सच का आइना दिखाती हैं तो कुछ दिन तक पुलिस इस गलत व्यवसाय को बंद करा देती हैं, लेकिन जैसी मामला ठंडा होता हैं सट्टा पट्टी पुनः गली मोहल्ले में लिखे जाने लगता हैं। अब देखना होगा प्रशासन इस भद्दे धंधे जिसमें आमजन कंगाल हो रहा हैं जिसको कब तक बंद करा पाती हैं।

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